नो टाइम फ़ॉर लव

जीवन की प्रतिदिन आपाधापी में हम अक्सर जीवन के मूल तत्व उसे जिए जाने से ही वंचित हो जाते हैं। सत्य है, सभ्यता के विकास के साथ क्रमिक विस्तार में हम जैसे-जैसे जीवन को और बेहतर ढंग से जीने के जतन करते रहे वैसे-वैसे ही हम जीवन से और जीने से दूर होते रहे। जो अर्थ कभी केवल जीवन जीने की आपूर्ति का सहयोग मात्र था आज जीवन उसी अर्थ प्राप्ति का सहयोग मात्र होकर रह गया है। नहीं क्या, सोचिए सोच कर बताइए। जबकि दूसरी ओर है प्रेम, जो जीवन का मूल आधार था आज वही केवल एक अपवाद मात्र रह गया है। नहीं क्या, सोचिए सोच कर बताइए। आजकल की जेनेक्स कल्चर अर्थात नवीन पीढ़ी के अपनी सुविधा और शर्त पर विकसित किये संस्कार में भी कई बार आपने यह पद सुना हो शायद नो टाइम पर लव अर्थात प्रेम के लिए समय ही नहीं है क्या स्वास्थ्य के लिए समय निकालना होता है नहीं ना तो प्रेम के लिए क्यों यहां समस्या प्रेम से नहीं है बल्कि प्रेम के प्राकट्य के साथ स्व उपजित वचनबद्धता और उत्तरदायित्व से है और उसके ना निभा पाने के डर से। ज़रा गौर करियेगा ऐसा डर क्यों होता है? शायद इसलिए कि कहीं ना कहीं वचन परायणता एक सर्वश्रेष्ठ उच्च कोटि गुण है वह गुण है जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया। खैर, प्रेम एक अति विशिष्ट और महंगा धन है जो हर किसी के जेब की विशेषता नहीं हो सकता और इसी चक्कर में आज की नवीन पीढ़ी इसके सबसे सस्ते वर्जन की तलाश में पता नहीं किस प्रेम के भ्रम में जीने लगती है। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि जिस प्रेम से वह दूर भागती है उसी प्रेम की स्वीकृति तलाश भी करती है और अपनी वचन परायणता की कायरता को छुपा लेने के लिए झूठे प्रेम का जतन भी करती है। अर्थात प्रेम जैसा महंगा अति विशिष्ट ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार तो चाहिए परंतु उसकी कीमत नहीं चुकानी फिर ना जाने किस अर्थ की आपूर्ति के पीछे भागती रहती है जिससे दो चुटकी प्रेम भी नहीं खरीदा जा सकता।

लेखिका – अन्नपूर्णा पवार आहुति

भाटापारा, छत्तीसगढ़।

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